Karunesh Tiwari author of Vihansti kaliyan

Life Story

चार दशक से अधिक समय पहले मुक्तक का गीत काव्य संग्रह की हस्ती कलियां का प्रथम प्रकाशन झांसी उत्तर प्रदेश से हुआ था । तब तभी श्री कृष्ण कुमार तिवारी करुणेश की उम्र महज 20 वर्ष थी । द्वितीय प्रकाशन 46 साल बाद एक श्रद्धांजलि के रूप में प्रकाशित हुआ। मौत को 20 साल की उम्र में ही श्री करुणेश ने इस अंदाज से आवाज दी थी। उसी अंदाज से वे मौत के साथ चले भी गए थे... करूणेश ने लिखा था मौत जब दिल आए बेखौफ चली आना, आवाज देना हम तुम्हारे साथ चलेंगे... गैस त्रासदी के रूप में भोपाल में मौत ने उन्हें आवाज दी थी और वह उसके साथ चल गए। जीवन की आपाधापी में रेलवे की नौकरी करने के लिए झांसी से भोपाल आए थे। आम लोगों की तरह जीविकोपार्जन के लिए उन्होंने रेलवे में बतौर गार्ड अपनी सेवाएं दी लेकिन उनके व्यक्तित्व में एक कवि भी था, जिसने आकाशवाणी पर बुंदेली कवि के रूप् में स्थापित किया। उन्होंने साहित्यिक संस्था दिनकर साहित्य परिषद से जुड़कर मासिक काव्य गोष्ठियों की लंबी संख्या चलाई। कई कवि सम्मेलन भी आयोजित किए। रेल कर्मचारियों की आवाज को बुलंद करने एवं साहित्यिक अभिरुचि को बढ़ावा देने करीब 13-14 वर्ष तक समाचार पत्र मासिक रेल संकल्प का प्रकाशन किया। रेल कर्मचारियों के बच्चों के लिए चलने वाले हाई सेकंडरी विद्यालय रेलवे बाल मंदिर का सालों तक संचालन किया। रेलवे में नौकरी करते हुए रेल मजदूरों के संगठन नेशनल रेलवे मजदूर यूनियन का नेतृत्व भी किया, लेकिन पलभर में उनकी सांसां पर विश्व की विशालतम गैस त्रासदी ने पूर्ण विराम लगा दिया ।

श्री करुणेश के जाने के बाद उनके उपन्यास अंगारों की राहें का प्रकाशन हुआ। उपन्यास मजदूरों के संघर्ष को रेखांकित करने वाला था उनकी याद में रेल क्षेत्र में राष्ट्रीय कवि सम्मेलन आयोजित किया गया। जिसमें देशभर के प्रसिद्ध कवियों ने हिस्सा लिया। व्यक्ति के जाने के बाद उनका कृतित्व ही रहता है, जो उसे हमारी यादों में बनाए रखता है।

विहंसती कलियाँ

अंगारों की राहें