चलो बच्चों मैं आपको ‘‘मिस्टर यू’’ की कहानी सुनाता हूं। पहाड़ पर बैठे बच्चे ऊंचाई से दुनिया देख रहे थे और जब हम जमीन से ऊपर उठकर खुद को देखते हैं तो हमें दुनिया बदली हुई नज़र आती है। कौन ‘‘मिस्टर यू’’-मानस ने पूछा। मिस्टर यू माने ‘‘श्रीमान आप’’- यादव सर बोले। स्नेहा गुस्से में बोली-‘क्या सर ये तो सिर्फ लड़कों की कहानी होगी।’ सर बोले-‘नहीं। यदि आप अपने आपको सिर्फ एक लड़का या लड़की, आदमी या औरत समझते हैं तो आप खुद के बारे में बहुत थोड़ा सा जानते हैं। आप सिर्फ ये या वो नहीं हो। ईष्वर ने हमें सपने देकर भेजा है। हमें लगता है कि हम छोटे हैं और सपने बड़े। ईष्वर यही चाहता है कि हम उन सपनों में फिट हो सकंे। जीवन आगे बढ़ने और तरक्की करने के लिए मिला है। आप एक व्यक्ति हो। लड़का या लड़की बाद की बात है। सफलता आपसे यह नहीं पूछती कि आपकी जाति क्या है? आप कौन सा धर्म मानते हैं? अमीर हैं या गरीब? लड़की हैं या लड़का? सफलता व्यक्ति चुनती है और व्यक्तित्व की दुनिया में लड़का-लड़की में कोई अंतर नहीं होता। हर व्यक्ति के अंदर एक हीरो छिपा है। वो लड़का या लड़की नहीं होता। लड़कियों के भीतर भी कोई हीरोईन नहीं होती। रानी लक्ष्मीबाई, मदर टेरेसा, इंदिरा गांधी कोई हीरोइन नहीं है। व्यक्तित्व की दुनिया में हम सबमें एक हीरो छिपा है, जिसे हमें ढूंढना है क्योंकि उसके पास सारी समस्याओं का इलाज है। सारे ताले की चाभी है। स्नेहा खुश हो गई। मुझमें भी हीरो है। अनु ने पूछा-‘वह कैसा दिखता है?’ तुम्हारे जैसा बिल्कुल तुम्हारे जैसा- सर ने कहा। तो फिर मिस्टर यू, श्रीमान आप, सभी या आपमें से कोई भी। हां उसे व्यक्ति होना जरूरी है।
‘क्या भैंसों का व्यक्तित्व होता है’-सर ने पूछा। नहीं केवल व्यक्ति का व्यक्तित्व होता है। वह गुण जिनसे एक व्यक्ति को पहचाना जाता है, वो उसका व्यक्तित्व है। आप क्या हो? क्या आप खुद का कान हो? या दिल या दिमाग या शरीर। कुलदीप बोला-‘मैं दिमाग हूं।’ सर बोले तो फिर ये पैर कौन हंै? कुलदीप सोचने लगा, यह भी तो मैं ही हूं। सब बोलो-‘सर आप ही बताइये।’
दोपहर का सूरज सर पर खड़ा था पर सर्दी के मौसम में सूरज की धूप अच्छी लगती है। यादव सर समझाने लगे। आप अपना मस्तिष्क हो, जो शरीर से प्राप्त आंकड़े इकट्ठे करता है और समय के अनुसार उसका इस्तेमाल करता है। आप अपना दिल हो, जो शरीर के लिए खून साफ करता है। कहानी के अनुसार जमा लेता है। आप अपना शरीर हो, जो एक रोबोटिक मशीन की तरह आपके मस्तिष्क के द्वारा कहे गए किसी भी काम को करने के लिए तैयार है, बस प्रशिक्षण देना या दिलवाना आपकी जिम्मेदारी है। आप खुद का स्वभाव हो, जो आपकी ट्रेनिंग का हिस्सा है। आप अपना ज्ञान हो, जो बचपन से अब तक आपने हासिल किया। आप अपना प्रशिक्षण हो, जो शुरू से अब तक आपने सीखा। आप अपना भोजन हो, जो भी पोषण आपने लिया हो या आपको मिला हो। आप अपने जीवन का सारांश हो, यह जीवन आपके शरीर का विस्तार है और आप आत्मा रुपी इस जीवन का केंद्र। आप सबसे जरूरी विषय या व्यक्ति हो, जिसके चारों तरफ यह सारा ब्रह्मांड चक्कर लगा रहा है और यह विष्व अपना एक सपना आपके भीतर प्रत्यारोपित कर देता है। पूरा जीवन हमें सिर्फ सपने को समझने और हासिल करने के लिए दिया गया है। हमारी मौत के समय आत्मा और ईष्वर हमसे जानना चाहते हैं कि हमने वह सपना समझा या नहीं। उसे पूरा करने का प्रयास किया या नहीं? और इसी से निर्धारित होता है कि हमने कैसा जीवन बिताया- सफल या काम चलाऊ?
बच्चों के मन में बातें घूमने लगी थीं। आप अपना मस्तिष्क हो। आप अपना मन हो। वह समझने का प्रयास भी कर रहे थे। सर बोले-आपको पता होना चाहिए कि जीवन आपसे क्या चाहता है और आपको जीवन से क्या हासिल करना है? ज़िंदगी वो बन जाती है, जो हम उसे बना दें। आपको पता होना चाहिए कि आप कैसे निर्णय लेते हो? आंकड़ों और अनुमान पर आधारित या फिर कोई त्वरित प्रतिक्रिया। आप अपने आपको क्या समझते हो? यह पता होना चाहिए। कुछ लोग बुरा मान जाते हैं यदि उनसे पूछ लो कि आप अपने आप को क्या समझते हो? हमें पता होना चाहिए कि हम अपने आपको समझते भी हंै या नहीं? आपको पता होना चाहिए कि आप कैसे हो? आपका मन, आपका शरीर, आपका स्वास्थ्य और वर्तमान, यह सब मिलकर उस समय के आप बनते हैं। हमें ये जानकारी होनी चाहिए। आपको यह भी पता होना चाहिए कि आप कहां खड़े हो? जीवन के अंतरिक्ष में आपका स्थान क्या है? बहुत सारे लोगों के जीवन की यह सबसे बड़ी समस्या है कि उन्हें यह मालूम ही नहीं होता कि वह कहां खड़े हैं और उन्हें कहां जाना है? आप यदि बहुत तेज दौड़ रहे हो और आपको नहीं मालूम कि आपको कहां जाना है, तो आप बेकार में दौड़ रहे हो। रुककर सोचने का समय है कि आप कहां खड़े हो? आपको पता होना चाहिए आप क्या चिंता करते हो? आपके विचार या विषय क्या हंै? मैंने कई लोगों को चिंता करते देखा और पूछा कि वह क्या सोच रहे हैं अधिकतर कहते हैं-नहीं मालूम। जिसे नहीं मालूम उसका समय बेकार जा रहा है। समय माने जीवन। आपको पता होना चाहिए कि आप जीवन से क्या चाहते हो? सफलता, वैभव, ईष्वरत्व या जो कुछ भी। आपको पता होना चाहिए कि आप उनके लिए क्या कर सकते हो? वो माने दुनिया,परिवार,दोस्त। आपको पता होना चाहिए आप उनसे क्या चाहते हो? जीवन ने आपको जो दिया और आपको जीवन से जो चाहिए, इसमें आप सबसे महत्वपूर्ण हो। निर्णय आपका होगा। आपको पता होना चाहिए कि आप किस खोज में हो? आपको जीवन से क्या चाहिए, आपके जीवन की क्या तलाश है? आपका खजाना क्या है? आपको पता होना चाहिए कि आप किसे मूल्य देते हो और किसे कीमत? आपको मालूम होना चाहिए कि आप क्या कीमत चुका सकते हो और क्या कीमत वसूल करना चाहते हो?
‘आपको,’ ‘मिस्टर यू’ को ही ये निर्णय लेने हैं। आओ चलो थोड़ा घूम लेते हैं। बच्चों के मन और मस्तिष्क भी घूम रहे थे। आप-आप-आप मिस्टर यू। कभी सोचा ही नहीं था इस तरह। पर यह सच है। आप दुनिया के सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति हो। यदि आप नहीं, तो भी दुनिया होगी, पर आपकी दुनिया नहीं। अपनी कीमत समझना जरूरी है, नहीं तो जीवन के बाजार में सस्ते में बिक जाओगे। व्योम बोला-‘क्या मतलब?’ शायद उसे समझ नहीं आया कि हम कैसे बिकेंगे? यादव सर समझाने लगे। दरअसल दुनिया एक बाजार है। जहां सब कुछ मिलता है। पर ये बड़ा बाजार है, जहां बहुत सारे विकल्प मौजूद हैं। जब हम दुनिया के बाजार से अपनी इच्छाएं और सपने खरीदने जाते हैं तो समय और दुनिया कीमत बता देते हैं। हम यदि वो कीमत चुका दें, तो वह सपना हमारा हो जाता है। नहीं तो हमारी इच्छाएं और सपने अधूरे रह जाते हैं।
‘तो क्या हमें खूब पैसा कमाना चाहिए ताकि हम कीमत चुका सकें’-पीयूष ने पूछा। सर बोले-‘नहीं! हर सपने की कीमत पैसा नहीं होती। कुछ सपने पसीना बहाकर पूरे होते हैं। कुछ के लिए दिमाग चलाना पड़ता है। दृढ़ निश्चय, मित्र और जाने क्या-क्या। कोई एक कीमत देकर सारे सपने पूरे नहीं होते। जो कार्य पसीना बहाकर हो सकता है, उसे पैसे से नहीं किया जा सकता। कीमत चुकाओ, सपना आपका। और दुनिया के बाजार में खुद को भी बेचना पड़ता है। कोई अपना समय बेचकर नौकरी करता है, कोई व्यापार, कोई व्यवसाय। पर अपना समय जो हम खर्च करते हैं, वो कीमत है जो हमने चुकाई। जीवन भर हम कीमत चुकाते रहते हैं। कुछ लोग कम हुनर के बावजूद बड़े बन जाते हैं। कई लोगों के पास बहुत हुनर होते हैं, फिर भी वह छोटे रह जाते हैं। दरअसल बाजार आपको मोल-भाव में उलझा देता है। यदि आप कीमत तय नहीं कर पाये तो बाजार आपकी कीमत तय कर देता है और बाजार हमेशा आपको सस्ते में खरीदना चाहता है। कई लोग दुनिया के फुटपाथ पर बिकते हैं, उन्हें जीवन की कीमत कम मिलती है। कुछ लोग शोरूम में जाकर बिकते हैं। अपने गुणों को दुनिया के बाजार में प्रदर्शित करते हैं और उन्हें अच्छी कीमत वसूल हो जाती है। जो दिखता है, वह बिकता है। आप कैसे खुद को दुनिया के सामने पेश करते हैं, इसी से आपकी कीमत तय होती है।
‘तो क्या आपको खजाना नहीं ढूंढना’- सर ने अचानक पूछा। ‘नहीं सर’-अनु बोली। कैडबरी तो हम घर पर भी खा लेते हैं। सर ने गहरी सांस ली। आप खजाना खोजने का खेल नहीं समझे। आखिर में खजाना आपको अमीर नहीं बनाता। खजाना खोजते समय आपके भीतर भी एक खजाना विकसित होता है। वो आपके भीतर का खजाना आपको अमीर बनाता है और पा लेना उतना जरुरी नहीं, जितना पाने के लिए प्रयत्न करना। कोई भी मंज़िल यात्रा से ज्यादा सुख नहीं देती। पाने का प्रयास ज्यादा खुशी देता है। पा लेने के बाद एक निर्वात या खालीपन होता है। इसलिए ये मत सोचो कि खजाने में क्या है? खोजो, ढूंढने का मजा लो और यदि मिल जाए तो बांटो।
बच्चे बोले-‘चलो सर आप भी साथ चलो।’ ठीक है चलो। सर भी साथ चल दिये। सर, सबसे पहले क्या सीखना चाहिए-स्नेहा बोली। ‘सीखना’- सर का जवाब था। सीखना, यही तो मैं पूछ रही थी कि क्या सीखना चाहिए? सीखना, वही पुराना उत्तर। कुछ भी आ जाने से आप दुनिया के राजा नहीं बन जाते। हम पैदा ही इसलिए हुए हैं कि सीखें। ईष्वर ने टास्क बनाये और फिर हमें भेज दिया उसे पूरा करने के लिए। हम सब जब पैदा हुए, फिर चाहे वो नेपोलियन हो या गांधी या कृष्ण हो या आप, रो रहे थे और हमारे शरीर पर कोई कपड़ा भी नहीं था। फिर हमने रोना शुरु कर दिया कि हमें कुछ नहीं आता। ईष्वर ने हमारी भूख देखकर हमें मां जैसा गुरु दिया। उसने हमें दूध पीना सिखाया। फिर हमने फिसलना सीखा, संभलना सीखा, खाना सीखा, पीना सीखा। हमने ध्यान नहीं दिया पर यह सब भी हुनर थे। क्या आपने कोई चैंपियन देखा है जिसे खाना-पीना, उठना-बैठना न आता हो। यह आसान काम हैं, हमने सीख लिया। पर यदि हम इस हुनर को ना सीख पाते तो तरक्की संभव नहीं थी। फिर हम स्कूल जाने लगे। ।एठएब्एक्ए1,2,3,4 और जाने क्या-क्या? हमें प्रशिक्षण दिया जाने लगा। अलग-अलग गुण सिखाने वाले गुरु मिलते गये। ये गुण या हुनर हमने मन से सीखे या मजबूरी में, पर जीवन ने हर बार परीक्षा ली। हममें से कई लोग परीक्षा से डर गये। कुछ इस चुनौती को स्वीकार कर टूट पड़े। जिसने जो खोजा, उसे वो मिल गया। जिन्होंने सफलता खोजी, उन्हें सफलता मिली। जिन्होंने असफलता खोजी, उन्हें असफलता मिल गई। जीवन वो है जो हमने बना लिया या जो हम बना लंे। फिर हम कक्षाओं में आगे बढ़ते गए। फिर नौकरी, व्यवसाय। जीवन भर हम हुनर सीखते रहे और हुनर के साथ अपना समय जीवन के बाजार में बेचते रहे। कई लोगों की कीमत वसूल हो गई। कई सस्ते बिक गए। बाजार का कोई तरीका नहीं होता। हर दिन नया दिन, हर रात नई रात।
तो यह मत सोचो कि क्या सीखना चाहिए? जीवन की नदी में यदि आ ही गये हो, तो छलांग लगाओ, डुबकी मारो। जो सीखने को मिलेगा देखो, ध्यान दो कि उस व्यक्ति को जीवन में उस हुनर से क्या मिला? थोड़ा सोचो। तुम्हें यदि वह हुनर या पुरस्कार आकर्षित करता हो तो उस क्षेत्र को चुन लो। उसी में अपना कैरियर बनाओ। ‘सर ये कैरियर क्या होता है? सब लोग इसके बारे में बात करते हैं’-मानस ने पूछा।
जब आप किसी काम से अपने जीवनयापन का इंतजाम कर उसे अपने व्यवसाय में बदल लें। साधारण शब्दों में उससे हमारे जीवन का खर्चा पानी चल जाये, वो कैरियर है।
सर आपका फेवरेट हुनर क्या है-विष्णु ने पूछा। सर ने कहा- घोड़ा चलाना, घुड़सवारी। जब मैं पहली बार घोड़ा चलाने गया तो वहां कुछ लोग सीढ़ियों पर बैठे थे। मैंने घोड़े पर चढ़ना चाहा तो घोड़े ने मुझे गिरा दिया। वो लोग मुझ पर हंसने लगे। बताओ वो लोग अच्छे थे या बुरे? बच्चे बोले-बहुत गंदे थे सर। ऐसे ही होते हैं लोग। हम कुछ भी करें तो वह हंसते ही हैं। हैं ना! सर ने ध्यान नहीं दिया। वो बोलनेे लगे-‘मेरी गलती थी। मैंने घोड़े से दोस्ती नहीं की थी और उस पर चढ़ गया था। घोड़े को शायद ये अच्छा न लगा हो इसलिए उसने मुझे गिरा दिया। मैंने घोड़े से सॉरी बोला। अपना नाम बताया और उससे कहा कि मुझे घुड़सवारी सीखने में मदद करो। फिर से घोड़े पर चढ़ा। मैंने पूरे मैदान का चक्कर लगाया और वापस उसी जगह आया जहां से शुरू हुआ था। घोड़े से जब मैं उतरा तो वो लोग खड़े हो गये। उन्होंने मेरे लिए तालियां बजाई। अब बताओ वह लोग अच्छे हैं या बुरे ?’बच्चे उलझ गये थे। वही बुरे लोग जो पहले हंस रहे थे, अब खड़े होकर ताली बजा रहे हैं। क्या ये कोई जादू है? नहीं, कोई छड़ी वाला जादू नहीं। बस जब आप पूरी लगन से मेहनत करते हैं तो अपने आप जादू हो जाता है।
आप बताइए सर, यह अच्छा और बुरा क्या होता है- व्योम ने पूछा। अच्छा माने प्लस बुरा माने मायनस। मानस या मायनस? सब हंसने लगे। मानस को गुस्सा आ रहा था पर यादव सर बोलते रहे। अच्छा, फायदा देगा और बुरा नुकसान करवाएगा। अच्छा खुशी देगा और बुरे से गुस्सा आएगा। अच्छा माने सफलता, अमीरी, रंग, समृद्धि, ऐष्वर्य, हुनर, धन, खुशी। बुरा माने असफलता, गरीबी, फीकापन, घृणा, आलस, ऋण, दुख। अच्छा, अच्छा है और बुरा, बुरा। सर क्या अच्छा है और क्या बुरा- संदल ने पूछा। सर बोले-‘ मान लो आपने गुस्सा किया, अब बताओ अच्छा किया या बुरा किया? सर ने संदल से पूछा। बुरा किया सर गुस्सा खराब होता है। सर हंस दिये। अब आगे सुनो- वह लोग उस बच्चे पर जुल्म कर रहे थे, मैंने उसे बचा लिया। मैंने गुस्सा किया, उनकी पिटाई लगा दी। अब बताओ अच्छा किया या बुरा किया? बच्चे फिर उलझ गये थे। सर तो ऐसे ही उलझा देते हैं। सर बोले- गुस्सा करना अच्छा या बुरा नहीं होता। दरअसल कुछ भी अपने आप में अच्छा या बुरा नहीं होता। चाणक्य कहते हैं-‘देश, काल, परिस्थिति के अनुसार कार्य किया तो अच्छा, नहीं तो बुरा।’ जहां हो वहां के नियम समझो। उन नियमों के अनुसार काम करो। हां आपको फायदा निश्चित होना चाहिए। नुकसान की कीमत पर आप कोई सौदा नहीं करते। अपने आप में अच्छा या बुरा कुछ नहीं होता। आपको उससे फायदा हुआ या नुकसान? यह योजना के अनुसार था या खिलाफ इससे निर्धारित होगा कि वो प्लस था या माइनस। सर हम लोगों में ज्यादा प्लस हैं या माइनस- अनु ने पूछा। प्लस बहुत सारे हैं। मायनस से कई गुना। पर थोड़े से मायनस बहुत ज्यादा ताकतवर होते हैं और वो बहुत सारे प्लस की कीमत कम कर देते हैं। सर कैसे-कुलदीप ने पूछा।