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Dada's Legacy

दादाजी (श्री लोकमणी चतुर्वेदी) जैसे किसी व्यक्तित्व का परिचय देना शब्दों की ताकत से परे है। फिर भी श्रद्धालुओं के लिये व्यक्ति परिचय की आवश्यकता को देखते हुए हम प्रयास कर रहे हैं। यदि कोई भूल हो तो मैं क्षमाप्रार्थी हूॅं।दादाश्री का जन्म 5 मई 1945, उ.प्र. आगरा के केन्ट नामक स्थान में हुआ। दादाजी का जन्म एक सर्वसम्पन्न परिवार में हुआ जहां जीवन की सारी सुख-सुविधाएं उनके लिये उपलब्ध थी। वे अपने पिताजी की आठवी संतान थे परन्तु एक बड़ी बहन के अलावा सभी संताने नहीं रही।

अर्थात वे सबसे बड़े पुत्र थे। दादा के पिताजी भी अपने परिवार में अकेले पुत्र थे तो पितृ पक्ष बहुत सीमित था। इसी प्रकार मातृपक्ष में भी दादा के बड़े मामाजी के पांच बच्चे होकर गुजर गये थे और छोटे मामाजी की कोई संतान नहीं हुई। इस प्रकार दोनों खानदानों (मातृपक्ष और पितृपक्ष) में दादा इकलौते चश्मोचिराग थे। सो बचपन बहुत वैभवसम्पन्न रहा। परन्तु बचपन में दादा को कई बीमारियाॅं घेरे रहीं और बड़े-बुजुर्ग बताते हैं कि दादा बड़ी मुश्किल से बच पाये।

बाबाजी (श्री रामकृष्ण चैबे) फिल्मकम्पनी में थे, उनका जीवन घूमने-फिरने का जीवन था। इसलिये उनका कभी कोई स्थायी निवास नहीं रहा। उन्हें कभी कहीं तो कभी कहीं जाना पड़ता था। इसलिये दादा का अधिकांश बचपन अपने बड़े मामाजी (श्री मदनमोहन) के सानिध्य में व्यतीत हुआ। मामाजी रेल्वे में डिवीजनल कमीशनर इन्सपेक्टर और बहुत महान विद्वान व्यक्ति थे।

मामाजी का स्थानान्तरण भोपाल हो गया फिर थोड़े समय बाद ग्वालियर जाना पड़ा। जिन्दगी के कई रूप होते है।किसी को पूरी दुनिया नहीं मिलती। कोई हमेशा खुश नहीं रह पाता। वहीं ग्वालियर में (मेट्रिक की पढ़ाई करते समय) बाबाजी की तबीयत खराब होने का समाचार मिला। उनकी सन् 1956 में कार दुर्घटना हो गई थी और उसमें उनका पैर टूट गया था। इस कारण उन्हें फिल्म इण्डस्ट्री छोड़ना पड़ी। फिर उन्होंने भोपाल में रेल्वे बुक स्टाल की एजेन्सी ले ली। परन्तु अक्सर तबीयत खराब रहने के कारण वो बुक स्टाॅल पर ध्यान नहीं दे पाए। घर की आर्थिक स्थिति कमजोर होने लगी, बीमारी के उपचार और घर के सामान्य खर्चे, आमदनी के स्त्रोत कम होते जा रहे थे।

बाबा की बीमारी का सुनकर दादाजी भोपाल आ गये। पर बहुत प्रयास के बावजूद बाबाजी को बचाया नहीं जा सका। उस समय दादा सिर्फ 16 वर्ष के थे। घर का उत्तरदायित्व दो छोटे भाई, एक छोटी बहन और दादी (श्रीमती गुलाब देवी)। जिन्दगी के तौर-तरीके बदल रहे थे।